अध्याय 9: जब वो चला गया
वो सुबह बाकी दिनों से अलग थी।आसमान में हल्की धुंध थी, जैसे किसी ने सारे रंगों को धीमे से मिटा दिया हो। आर्या की आँखें रातभर नहीं लगी थीं — मेज़ पर पड़ा अयान का छोड़ा हुआ पत्र, अभी भी खुला था।
"मुझे जाना होगा, आर्या… शायद कुछ दूर रहकर ही समझ पाऊँ कि तुम्हारे बिना रहना कितना मुश्किल है।"
उसकी उंगलियाँ उस कागज़ पर बार-बार फिसल रही थीं, मानो शब्दों से जवाब तलाश रही हों।
कॉफी का प्याला ठंडा हो चुका था, लेकिन दिल अब भी जल रहा था।वो खिड़की के पास खड़ी होकर बाहर देख रही थी — वही सड़क जहाँ कभी अयान उसके लिए छतरी लेकर दौड़ा था, आज खाली थी।
वो बोली,"कहते हैं जाने वाले लौट आते हैं… पर कोई बताए, कब?"
हर पल जैसे रुक गया था।उसने अपनी डायरी खोली और लिखा —
"कुछ कहानियाँ ख़त्म नहीं होतीं… बस रुक जाती हैं किसी मोड़ पर।"
बारिश की पहली बूँद खिड़की पर गिरी।आर्या मुस्कुराई और फुसफुसाई —"शायद बारिश फिर वही कहानी सुनाने आई है…" 🌧️
